खोरठा साहितेक परकिरन (प्रकीर्ण) साहितिक भाव फुरचावा आर एकर भिनु-भिनु विधा के पटतइर देइ के छोट-खांट करा।

सबद कोसे ‘प्रकीर्ण’ कर माइने होवे हे – छितराइल, पसरल, फइलल, मिलल – मेसल , फुटकल।

परकिरन (प्रकीर्ण) साहित लोक साहित के एगो मुइख भाग लागे जाकर खास माइन हे। मानुसेक दइनिक (दैनिक) जीवन में आपन अनुभव पटतइर (उधारण) भावे परजोग करल जा हइ जकर आइज तक बेस तरी गोंठ (संकलन) नाय होवे पारल हइ। आर एहे कारने ई सब छितराइल रूपे बिना मानक के पावल जा हे। अइसन साहित के फुटकल बा ‘प्रकीर्ण’ साहित कहल जा हे।

परकिरन साहेतक भाग

लोकोति/लोकबाइन/कहावत, बुझवल(पहेली), मुहाबरा (अहना), मनतर, चुटकुला, खेलगीत (fig)

अजगड़ देहाते, बउने, खोहे, जनमल ई सब सुरुजेक किरिन नियर सोभे जगह पसरल हइ। मनतर छोइड़ के लोकोति, मुहाबरा, पहेली , जिनगीक अनुभव के उपज लागइ।  एकर बेसी लिखल रूप नाय आर कंठ परंपरा से पुरना परिया समय से पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलल आइ रहल हे।

परकिरन साहितेक भिनु-भिनु बिधा के छोट – खांट परिचय हेंठे दियल गेल हे:

लोकोति: माइने लोकल मइधे परचलित कथन बा उकति (उक्ति) लोक +उक्ति = लोकोति

एकरा अंग्रेजी में proverb कहल जा हे। ई मानुसेक ढांगा अनुभव पर ओठंगल रहे हे आर इतिहास, परमपरा ,सनसकिरति  के छापा छोड़े हे। 

ई जिनगीक नीतिशास्त्र लागे। जखन ककरो कोनहो सिख दिएक बा गियान दिएक बा फिंगाठी करेक समय आवे हे तखन लोकबाइन अकचके फुइट बहरा हे आर बाते चाइर – चाँद लगाइ दे हे।

खोरठा लोकबाइन गढ़िया रुपे तलियाल हइ आर डेगे-डेगे ई आपन छाहा छोइड़ के समाजेक सुधार में खास जोगदान दे हे। 

दुइ चाइर गो पटतइर देखल जाइ पारे :

अनकर धने बिकरम राजा दूसरों के भरोसे हवा हवाई बातें करना।

चिकन देहि, गुलगुल गात, कते दिन देतउ भात शरीर को केवल सुंदर नही मेहनती बनाना चाहिये। 

चले सादा निभे बाप-दादा   सादा जीवन उच्च विचार  ।

मुहाबरा

अरबी भाखाक सबद लागय जाकर मायने मुहा मुही बात चित होवे हे। अंग्रेजी में Idiom कहल जा हे। 

मुहाबरा एगो बाइकेक टोना लागइ जे बिसेस अरथ धारन कइर के बाइक में आपन ‘उपस्थिति’ से भासायं चाइर – चाँद लगाई दे हे।छोट आकार होवेक बाद भी ई आपन कोराञ गुढ़ रहस्य राख हइ आर ढंगा अरथ के परदरसित करे हे।

हेंठे कुछ पटतइर देखल जाइल पारे :

आइग लगबा : झगड़ा करा

कपार चढेक : बड़ी बदमासी

ठेपो देखवेक : बेइमानी

टर – टर करेक : बकवास।  आरो – आरो। 

बुझबइल

खोरठें पहेली बा बुझबइल के हिआली कहल जा हे जबकि कठिन पहेली के फांकी कहल जा हे। कोनहो बसुत के बासतबिक बा मूल अरथ नुकाय खातिर कोनहो आरो अरथ फुरछाइल जा हे – बुझबल कहल जा हे। 

जखन मानुस चाहे हइ की ओकर बाइत कोइ आर लोक नाय बुझे पारे तखन ऊ एगो बिसेस कला के माइधम से बात रखे हे – एकरा बुझबइल मानल जाइल पारे। 

जइसे : एक थारी बरी गनहो नाय पारी = तारे

एगो बांध दू रंग पानी = अंडा (डिम)

एगो बूढ़ीक गोटे गात फुसरी = कटहर

मनतर : खोरठा छेतर गावेंक रहवइया के छेतर लागे जहाँ बउन , झार , पहार , चिराय , चिनगु के बीचे लोक रहे हथ।  हिआं लोकक बिच डाइन , भुत , परेत , कुल देवता के गढ़िया भाबे मानल जा हे सइ  से मनतर के परजोग पावल जा हे।   

सांप -बिछा , अखरी-पिपरी काटल पर मनतर के परजोग करल जा हे। डाइन -भुत झारे बा बांधे खातिर ओझा-गुनी एकर परजोग कर हाथ।  पटतइर दे के देखल जाइल पारे :

” तीन सइरसा तीन राइ

हरेक गले मसाने छाइ

डेनिक मंतर राइ छई

हमर मंतर आगु जाइ

दोहाइ माई काली “

चुटकुला

कोनहो घटना बा बाइत के हांसी-ठाठा भाबे बइजकेक चुटकुला कहल जा हे। अंग्रेजी में joke कहल जा हे। 

चुटकुला सुनवेक में बोली के उतार चढाव के गढ़िया महाइतम हइ।  लोकक टाइम पास बा मनोरनजनेक में एकर खास असथान है। 

जइसे :   डाक्टर : राइते टेनसन लइ के नाय सुतिहे , हाम : तो कि कनियाय के नहिरा पाठय देबइ।

   मास्टर : नसा नाय करेक चाही , पप्पू : सर किताप पढेल छोइड़ देबइ ?

माइर कुइट के हमिन कहे पारे की परकिरन सहित गोटे समाज के आइना लागय जकर में लोक आपन इतिहास, हंसी ठाठा , अनुभव, गियान, आरो – आरो के छापा देखञ हथ। एकर बिनु समाज अनाथ रकम भई जीतय।  समय आइ गेल हे की ई छितराइल बिधा के लिखेक दरकार आरो परचलित करेक। 

लोकोतिक जनम

लोकोतिक माईने होवे हे – लोकक बीचे परचलित ‘उक्ति’ बा कथन जे ढागा लोक अनुभव पर ओठंगल रहे हे। एकरा अंगरेजी भाखायं Proverb कहल जा हे। ई बासतब में जीवनेक नीतिगत आचार संहिता लागइ।

सासतरिय(शास्त्रीय) दरिसटीकोन से लोकोति गोन (गौण) अलंकार मानल गेल हे।  लोक बिखाइत कोनहो कहवतेक अनुकरन से लोकोति अलंकार होवे हे। 

बिदबान सोभ बेदें (वेद) पावल आधा ‘ऋक’ (मंतर) के लोक सहित के बीचि (बीज) मानल हथ।

भिनु भिनु बिदबान  लोकोतिक जनम पर आपन – आपन बिचार देल हथ जे ई नियर निचु उखरवल गेल हे :

डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल जीक मत

लोकोति मानुसेक गियान के चोखो आर भोंसल (चुभता हुआ) सुतर (सूत्र) लागे।  पुरानपरिआ काल से सुरुज जे रकम धातुक तपाय के नाना रकम के रतन (रत्न) बनवे हइ जकरप्रकाशसदाइ छटके हइ सेहे रकम लोकोति मानुस गियान के गढ़िया रतन लागे जकर से बुधि आर अनुभव के आलो पावल जा हे।  

डॉ कृष्णदेव उपाध्याय जीक मत

लोकसहित्य की भूमिकानामेक आपन किताबें डा कृष्णदेव उपाध्याय लिखल हथिलोकोक्तिक जनम लोकमानुसेक एगो ढांगा अनुभवेक पेछु हवल हे।एकर माने लोक समाजेक कोन्हो चनफनियाचेठगर लोक जखन कोन्हो एगो घटनाके नित दिन देखइत हतइ आर खास बाइत ओकर मगजे बइठ गेल हतइ।

कुंदन लाल उत्प्रेती जीक अनुसार

लोकोति लोकमानस के अइसन छोटखांट तापल आरलोकप्रिय‘ ‘उक्तिलागय जकर में मानुस गियान आर अनुभव आपन सहज आर गढ़िया रुपे बिद्यमान रहे हे।  लोकजीवन के जिंदादिली के पटतइर लागय। 

ई रकम हमिन कहे परे की नाना रकम के अनुभव, पुरान-परिया लोकक कथा , परकीरति नियम आर लोक बिसबास पर ओठंगल अइसन कथन जकर परजोग आपन बातेक ‘पुसट’ करेक  बा बिरोध परकट करेक , सिख दियेक बा फिंगाठी करेक में होवे हे – लोकोति कहा हे।  ई गावंक देहातेक , समाजेक सोभे बरग के रतन लगाइ जे   अकचके फुइट बहरा हे। 

लोकोति बा लोकबाइन के विसेसता

  • गगरे सागर भोरक खेमोता – लोकोति छोट खांट होवे हे आर आपन भिनु सवतंतर अरथ राखे हे मेनतुक भाव एकर गढ़िया आर बोड़ अड्गुड़ाम (रहस्य) होवे हइ। ई भावे लोकोति में गागर में सागर भोरक गुन पावल जा हे। जइसे : थिर पानी पाथर काटे। अघन सूखे फूलल गाल, फइर बहोरिया ओहे हाल I आरो-आरो
  •  मानुसेक अनुभूतिक उपज : मानुस आपण जिनगीञ जे अनुभव करल  हे आर सुनल हे आर ओकर से जे   सीखल हे ओहे काभइत बनल आर पटतइर  रुपे अकचके फुइट बहरा है।  सइ ले एकरा अनुभूतिक उपज कहल जा हे।  जइसे : अनारी जोते कनारी, सियान जोते बहियार I उगर सुरुज डूइब जाइ  I आरो-आरो
  • निति शास्त्र नियर सोभाव : लोकबाइन के परजोग से ककरो सिख दियल जा हे आर एकर में बोडो उलझन समिसिया के कटि समय में सुलझवेक गुन पावल जा हइ। अहे एकरा लोकसाहितेक नीतिशास्त्र कहल जा हे। जइसे: लंगट बेस झंझट नाय। परदेसिक संग आर हरदीक रंग ।
  • सरल आर सहज भाखा: लोकोति भासा एकदम सरल  आर सहज पावल जा हे, सेले एकरा साधारन लोको बुइझ जा हे। एहे खातिर एकरा लोकबाइनो कहल जा हे। 
  • जइसे : उपरे बइगन, चाक चिकन ।   नावाँ मदारी होरहोरवा साँप ।
  • पइद रूप आर तुकान्त

पइद  रुपे लोकोति तुकान्त होवे हे बा सरल बाइक होवे हे मनेकि ई दुइयो रुपे पावल जा हे।

तुकान्त : तुरी मोरे आपन लूरि हिआं तुरी आर लूरि में तुकान्त हइ। 

खरखर मुंहा हांसल जाइ, गुमनमुहा सरबस खाइ हिआं जाइ आर  खाइ में तुकान्त हइ। 

मगुर गोड़ नाय चले कइराक़ भार , सइ पारसेक तीन पात  तुक नाय आर सरल बाइक रुपे हइ ।

  • पटतइर रुपे परजोग: लोकोतिक परजोग बिना कोनहो सबद बा बाइक के सहजोग से करल जा हे।  एकर माने ई एगो गोटा आर सवतनतर बाइक हक़इ सई ले लोकोति  पटतइर कहल जा हे।  जइसे : मुर्गा नाय बांगले की बिहान नाय होवे। 
  • सालाठन रुपे  परजोग : जखन ककरो पर फिंगाठी करल जा हे तखन उलाहना (पिनकाना ) करे खातिर सलाथन रुपे लोकोतिक परजोग करल जा हे।  

घरे भुंजी भांग नाँइ, मियाँ पादे चुरा ।

बोड बोड बोहाय गेला गधा कहे कते पानी। 

मँगनीक चन्दन लगावे रघुनन्दन। 

घरेक मुरगी दाइल बराबर। 

  • गइद पइद  दुइयो रूप

पइद रूप : पेट भेल भारी तो ककर बापेक धारी।

पींघेकर सादा ओढेकर सादा जे निभे बाप दादा।

जइसन हीराक चोर तइसन खिराक चोर।

जाकर गहना तकरे साजे आन लोकक ठेरका बाजे। 

पइद रूप: जउ  संग गोहुम पिसाय।

थूके सातु सानेक।

बारह राजपूत तरह चूल्हा।

  • मड़उ (अश्लील) लोकबाइन नाय के बराबर

खोरठा लोकबाइन समजेक एगो आइना लगाय।  गारी,खराप बाइत , लुझारगिरि , टीला नाय  बराबर पावल जा हे।  थांती फिंगाठी रुपे ई गियान के संदेस दे हे।  

माइर कुइट के कहल जाय पारे कि खोरठा लोकोति के सवरूप ढांगा हे।  एकर परचलन के कोनहो सीमा नाय।  ई कोनहो खास जोगोह के सीमा में बँधाइल नाय बचकुन सोभे देस, जगह, जनमानुस के मगजे बइसल हे।  ई मानुस के अनुभवी माथाक उपज लागय आर पीढ़ी दर पीढ़ी सिंचित भेल हे।  जीवनक कटु सच आर गढ़िया अरथ आपन कोराञ राइख के ई लोकबाइन बेडाइल समय आर कठिन परिसथति में हमीन के प्रेरना दे हे। 

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